श्लोकसंख्याः - | |||||||
91 | 92 | 93-94 | 94-96 | 97 | 98 | 99 | 100 |
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मूलश्लोकः-91 |
न पुत्रमरणं केचिद् द्रक्ष्यन्ति पुरुषाः क्वचित्। नार्यश्चाविधवा नित्यं भविष्यन्ति पतिव्रताः।।91।। |
श्लोकान्वयः - |
केचिद् (अपि) पुरुषाः क्वचित् पुत्रमरणं न द्रक्ष्यन्ति। नार्यः नित्यम् अविधवाः पतिव्रताः च भविष्यन्ति।।91।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
श्री राम के राज्य में कोई भी पिता अपनेे पुत्र का मरण नहीं देखेगा। नारियाँ सदैव सौभाग्यशालिनी एवं पतिव्रता बनी रहेगीं ।।91।। |
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मूलश्लोकः-92 |
न चाग्निजं भयं किञ्चन् नाप्सु मज्जन्ति जन्तवः। न वातजं भयं किञ्चन् नापि ज्वरकृतं तथा।।92।। |
श्लोकान्वयः - |
न च अग्निजं किञ्चिद् भयम्, न (च) अप्सु जन्तवः मज्जन्ति न किञ्चिद् वातजं भयम्, न अपि ज्वरकृतं तथा।।92।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
श्रीराम के राज्य में अग्निकाण्ड का कोई भय नहीं रहेगा। प्राणियों के पानी में डूबने का भी कोई भय नहीं होगा। इसी प्रकार अकालमृत्यु रूप कोई आधिदैविक भय नहीं रहेगा। इसी प्रकार ज्वरपीड़ा आदि जैसे आधिभौतिक कष्ट भी नहीं होगें।।92।। |
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मूलश्लोकः-93-94 |
न चापि क्षुद्भयं तत्र न तस्करभयं तथा। नगराणि च राष्ट्राणि धनधान्ययुतानि च।। 93।। नित्यं प्रमुदिताः सर्वे यथा कृतयुगे तथा।।94।। |
श्लोकान्वयः - |
न च अपि तत्र क्षुद्भयम्, तथा (एव) तस्करभयम् (अपि) न। नगराणि राष्ट्राणि च धनधान्ययुतानि। सर्वे तथा प्रमुदिताः यथा कृतयुगे।।93-94।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
इस प्रकार राम राज्य में न भूख का भय और न चोर का भय रहेगा। नगर एवं प्रदेश सभी प्रकार से समृद्ध रहेगें। सभी लोग उसी प्रकार प्रसन्न रहेंगें जैसे सत्ययुग में।।93-94।। |
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मूलश्लोकः-94-96 |
अश्वमेधशतैरिष्ट्वा तथा बहुसुवर्णकैः।। 94।। गवां कोट्ययुतं दत्त्वा विद्वद्भ्यो विधिपूर्वकम्। असंख्येयं धनं दत्त्वा ब्राह्मणेभ्यो महायशाः।। 95।। राजवंशाञ्छतगुणान् स्थापयिष्यति राघवः। चातुर्वर्ण्यं च लोकेऽस्मिन् स्वे-स्वे धर्मे नियोक्ष्यति ।।96।। |
श्लोकान्वयः - |
महायशाः राघवः अश्वमेधशतैः बहुसुवर्णकैः इष्ट्वा गवां कोट्ययुतं असंख्येय धनं (च) विद्वद्भ्यः ब्राह्मणेभ्यः विधिपर्वूकं दत्त्वा राजवंशान् शतगुणान् स्थापयिष्यति। अस्मिन् लोके चातुर्वर्ण्यं स्वे-स्वे धर्मे नियोक्ष्यति च।।94-96।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
महायशस्वी श्रीराम प्रचुर स्वर्णों के उपयोग वाले सैकड़ों अश्वमेधों से यज्ञ करके तथा विद्वान् ब्राह्मणों को दस हजार करोड़ गाएँ एवं अपरिमित धनराशि शास्त्रविधिपूर्वक प्रदान करके पूर्व की अपेक्षा सैकड़ों गुने उत्तम राज्य की स्थापना करेगें तथा इस लोक में चारों वर्णों को अपने-अपने कर्तव्य में प्रवृत्त करगें।।94-96।। |
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मूलश्लोकः-97 |
दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च। रामो राज्यमुपासित्वा ब्रह्मलोकं प्रयास्यति।।97।। |
श्लोकान्वयः - |
रामः दशवर्षसहस्राणि दशवर्षशतानि च राज्यम् उपासित्वा ब्रह्मलोकं प्रयास्यति।।97।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
जो भी व्यक्ति इस निष्पाप पुण्यप्रद तथा वेदानुसारी राम के चरित्र को पढ़ेगा वह सभी पापों से मुक्त जाएगा।।98।। |
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मूलश्लोकः-98 |
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वेदैश्च सम्मितम् । यः पठेद् रामचरितं सर्वपापैः प्रमुच्यते।। 98।। |
श्लोकान्वयः - |
इदं पवित्रं पापघ्नं पुण्यं वैदेश्च सम्मितं रामचरितं यः पठेत् सर्वपापैः प्रमुच्यते।।98।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
जो भी व्यक्ति इस निष्पाप पुण्यप्रद तथा वेदानुसारी राम के चरित्र को पढ़ेगा वह सभी पापों से मुक्त जाएगा।।98।। |
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मूलश्लोकः-99 |
एतदाख्यानमायुष्यं पठन् रामायणं नरः। सपुत्रपौत्रः सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते।। 99।। |
श्लोकान्वयः - |
एतद् आयुष्यम् आख्यानं रामायणं पठन् नरः सपुत्रपौत्रः सगणः प्रेत्य स्वर्गे महीयते।।99।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
दीर्घायुष्य कारक इस राम कथा (रामायण) को पढ़कर मनुष्य शरीर त्यागने के बाद पुत्र, पौत्र एवं अनुयायियों के साथ स्वर्गलोक में पूजा जाता है।।99।। |
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मूलश्लोकः-100 |
पठन् द्विजो वागृषभत्वमीयात् स्यात् क्षत्रियो भूमिपतित्वमीयात्। वणिग्जनः पण्यफलत्वमीयाज्जनश्च शूद्रोऽपि महत्त्वमीयात्।।100।। |
श्लोकान्वयः - |
द्विजः पठन् वागृषभत्वम् ईयात् स्यात् क्षत्रियः भूमिपतित्वम् ईयात् वणिग्जनः पण्यफलत्वम् ईयात् शूद्रः जनः च अपि महत्त्वम् ईयात्।।100।। |
हिन्दी-अनुवाद - |
इस रामायण को पढकर ब्राह्मण वाक्चातुर्य प्राप्त करे, यदि क्षत्रिय है तो भूमि के स्वामित्व को प्राप्त करे। वैश्य होने से व्यापार में लाभ प्राप्त करे तथा शूद्र को भी महत्त्व प्राप्त हो।।100।। |
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