श्लोकसंख्याः -
12-15 16-19 19-21 21-22 23 24 25-26 26-28 28-29 30-32
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मूलश्लोकः-12-15
धर्मज्ञः सत्यसन्धश्च प्रजानां च हिते रतः. यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिर्वश्यः समाधिमान्।. 12..
प्रजापतिसमः श्रीमान् धाता रिपुनिषूदनः. रक्षिता जीवलोकस्य धर्मस्य परिरक्षिता.. 13..
रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता . वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः.. 14..
सर्वशास्त्रार्थतत्त्वज्ञः स्मृतिमान् प्रतिभानवान्। सर्वलोकप्रियः साधुरदीनात्मा विचक्षणः.. 15..

श्लोकान्वयः -
(स च रामः) धर्मज्ञः सत्यसन्धः प्रजानां हिते च रतः यशस्वी ज्ञानसम्पन्नः शुचिः वश्यः समाधिमान् च (अस्ति).. 12..
(स च रामः) प्रजापतिसमः श्रीमान् धाता रिपुनिषूदनः जीवलोकस्य रक्षिता धर्मस्य (च) परिरक्षिता (अस्ति).. 13..
(स च रामः) स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता वेदवेदाङ्गातत्त्वज्ञः धनुर्वेदे च निष्ठितः (अस्ति) .. 14..
(स च रामः) सर्वशास्त्रार्थ-तत्त्वज्ञः स्मृतिमान् प्रतिभानवान् सर्वलोकप्रियः साधुः अदीनात्मा विचक्षणः (च अस्ति).. 15..

हिन्दी - अनुवाद -
राम धर्म के ज्ञाता, सत्य प्रतिज्ञावाले, प्रजा के कल्याण में निरन्तर संलग्न, यशस्वी, ज्ञानवान् पवित्र आचरण युक्त, विनययुक्त तथा योगी हैं .. 12..
वे ब्रह्मा के सदृश हैं , श्री से युक्त, प्रजा के धारक, शत्रुनाशक, जीवलोक के रक्षक एवं धर्म के सर्वथा संरक्षक हैं .. 13 ..
स्वधर्म के परिपालक, स्वजनों के रक्षक, वेदों तथा वेदाङ्गों के मर्म को जानने वाले एवं धनुर्वेद में भी निष्ठावान् हैं .. 14 ..
सभी शास्त्रों के रहस्य के ज्ञाता, सुदृढ स्मृति वाले, प्रतिभा सम्पन्न, सभी के प्रिय, सज्जन, आत्मबलयुक्त एवं विवेकसम्पन्न हैं .. 15..
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मूलश्लोकः-16-19
सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः. आर्यः सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शनः.. 16..
स च सर्वगुणोपेतः कौसल्यानन्दवर्धनः. समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्येण हिमवानिव.. 17..
विष्णुना सदृशो वीर्ये सोमवत् प्रियदर्शनः. कालाग्निसदृशः क्रोधे क्षमया पृथिवीसमः.. 18..
धनदेन समस्त्यागे सत्ये धर्म इवापरः.

श्लोकान्वयः -
(रामः) सर्वदा सद्भिः समुद्रः सिन्धुभिः इव अभिगतः (भवति). (सः) आर्यः सर्वसमः सदा एव प्रियदर्शनः च (अस्ति). सर्वगुणोपेतः सः कौसल्यानन्दवर्धनः च (अपि अस्ति). गाम्भीर्ये (सः) समुद्रः इव, धैर्येण हिमवान् इव, वीर्ये विष्णुना सदृशः सोमवत् प्रियदर्शनः ( च अस्ति). क्रोधे कालाग्निसदृशः, क्षमया पृथिवीसमः, त्यागे धनदेन समः सत्ये अपरः धर्मः इव (च अस्ति)..16-19..

हिन्दी - अनुवाद -
जैसे समुद्र सदा नदियों से घिरा हुआ रहता है, उसी तरह राम सज्जनों से सदा मिलते हैं . वे सर्वसुलभ हैं , सभी के प्रति समान व्यवहार करते हैं और सभी अवस्थाओओओं में प्रिय दिखाई देते हैं .. 16..
राम सब गुणों से सम्पन्न हैं , माता कौसल्या के आनन्द को बढ्Zआने वाले हैं , समुद्र के समान गम्भीर तथा हिमालय के समान धैर्यशाली हैं .. 17 ..
वे शक्ति में विष्णु के समान हैं तथा चन्द्रमा की तरह प्रिय दिखाई देते हैं . वे क्रोध में प्रलयकाल के अग्नि के समान तथा क्षमा में पृथिवी की तरह हैं .. 18 ..
वे दान करने में कुबेर के समान तथा सत्यभाषण में दूसरे साक्षात् धर्म हैं .. 19..
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मूलश्लोकः-19-21
तमेवंगुणसम्पन्नं रामं सत्यपराक्रमम्।. 19..
ज्येष्ठं ज्येष्ठगुणैर्युक्तं प्रियं दशरथः सुतम् . प्रकृतीनां हितैर्युक्तं प्रकृतिप्रियकाम्यया.. 20..
यौवराज्येन संयोक्तुमैच्छत् प्रीत्या महीपतिः.. 21..

श्लोकान्वयः -
महीपतिः दशरथः तम् एवंगुणसम्पन्नं सत्यपराक्रमं प्रकृतीनां हितैः युक्तं ज्येष्ठगुणैः युक्तं ज्येष्ठं सुतं रामं प्रकृतिप्रियकाम्यया प्रीत्या (च) यौवराज्येन संयोक्तुम् ऐच्छत्।. 19-21..

हिन्दी - अनुवाद -
महाराजा दशरथ ने प्रजा कल्याण की कामना से पूर्व में कथित गुणों से युक्त अतुलित पराक्रम वाले, प्रजाहित के चिन्तन में निरत, ज्येष्ठ गुण से युक्त अपने ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम को प्रसन्नतापूर्वक युवराज बनाने की इच्छा की..19-21..
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मूलश्लोकः-21-22
तस्याभिषेकसम्भारान् दृष्ट्वा भार्याऽथ कैकयी.. 21..
पूर्वं दत्तवरा देवी वरमेनमयाचत. विवासनं च रामस्य भरतस्याभिषेचनम्।.22..

श्लोकान्वयः -
अथ तस्य अभिषेकसम्भारान् दृष्ट्वा पूर्वं दत्तवरा भार्या देवी कैकयी रामस्य विवासनं भरतस्य अभिषेचनं च एनं वरम् अयाचत..21-22..

हिन्दी - अनुवाद -
(राजा दशरथ ने जब राम को युवराज पद पर अभिषिक्त करना चाहा तब) राज्याभिषेक की प्रस्तुति को देखकर रानी कैकयी ने राजा दशरथ से पूर्व में प्राप्त दो वरों को इस समय माँगते हुए कहा कि राम का राज्य से निर्वासन किया जाय एवं भरत का राज्याभिषेक किया जाय..21-22..
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मूलश्लोकः-23
स सत्यवचनाद्राजा धर्मपाशेन संयतः. विवासयामास सुतं रामं दशरथः प्रियम्।. 23..

श्लोकान्वयः -
सत्यवचनात् धर्मपाशेन संयतः सः राजा दशरथः प्रियं सुतं रामं विवासयामास..23..

हिन्दी - अनुवाद -
धर्म बन्धन से बद्ध राजा दशरथ ने सत्यप्रतिज्ञ होने के कारण अत्यन्त प्रिय राम को राज्य से निर्वासित कर दिया..23..
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मूलश्लोकः-24
स जगाम वनं वीरः प्रतिज्ञामनुपालयन्। पितुर्वचननिर्देशात् कैकेय्याः प्रियकारणात्।. 24..

श्लोकान्वयः -
सः वीरः पितुः वचननिर्देशात् कैकेय्याः प्रियकारणात् प्रतिज्ञाम् अनुपालयन् वनं जगाम..24..

हिन्दी - अनुवाद -
वीर रामचन्द्र कैकेयी की प्रसन्नता के कारणभूत पिता के वचन रूप आदेश से (कैकेयी के समक्ष की गई पितृवचन पालन करने की) उनकी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए वन गए..24..
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मूलश्लोकः-25-26
तं व्रजन्तं प्रियो भ्राता लक्ष्मणोऽनुजगाम . स्नेहाद्विनयसम्पन्नः सुमित्रानन्दवर्धनः..25..
भ्रातरं दयितो भ्रातुः सौभ्रात्रमनुदर्शयन्।.26..

श्लोकान्वयः -
विनयसम्पन्नः सुमित्रानन्दवर्धनः भ्रातुः दयितः प्रियः भ्राता लक्ष्मणः स्नेहात् सौभ्रात्रम् अनुदर्शयन् तं व्रजन्तं भ्रातरम् अनुजगाम..25-26..

हिन्दी - अनुवाद -
भ्राता राम के प्रति सौहार्द रखने वाले अनुज सुमित्रानन्दन विनयसम्पन्न लक्ष्मण जो श्री राम के अत्यधिक प्रिय थे उन्होंने भी वन जाते हुए राम का स्नेहवश अनुगमन किया..25-26..
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मूलश्लोकः-26-28
रामस्य दयिता भार्या नित्यं प्राणसमा हिता.. 26..
जनकस्य कुले जाता देवमायेव निर्मिता. सर्वलक्षणसम्पन्ना नारीणामुत्तमा वधूः .. 27..
सीताप्यनुगता रामं शशिनं रोहिणी यथा..28..

श्लोकान्वयः -
जनकस्य कुले जाता देवमाया इव निर्मिता रामस्य दयिता नित्यं प्राणसमा हिता भार्या सर्वलक्षणसम्पन्ना नारीणाम् उत्तमा वधूः सीता अपि यथा शशिनं रोहिणी (तथा) रामम् अनुगता..27-28..

हिन्दी - अनुवाद -
राजा जनक के कुल में उत्पन्न मोहिनी की तरह निर्मित राम की प्रेयसी, सदा प्राणसदृश हितकारिणी, उत्तम स्त्री के सभी गुणों से भूषित, स्त्रिया में श्रेष्ठ सीता ने भी राम का उसी प्रकार अनुगमन किया जिस प्रकार रोहिणी चन्द्रमा का अनुगमन करती है..27-28..
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मूलश्लोकः-28-29
पौरैरनुगतोदूरं पित्रा दशरथेन च.. 28..
शृङ्गवेरपुरे सूतं गङ्गाकूले व्यसर्जयत्। गुहमासाद्य धर्मात्मा निषादाधिपतिं प्रियम् ..29..

श्लोकान्वयः -
पौरैः पित्रा दशरथेन च दूरम् अनुगतः धर्मात्मा (रामः) श्रृङ्गवेरपुरे निषादाधिपतिं प्रियं गुहम् आसाद्य गङ्गाकूले सूतं व्यसर्जयत्।.28-29..

हिन्दी - अनुवाद -
वनगमन के समय पुरवासियों एवं पिता दशरथ के द्वारा बहुत दूर तक राम का अनुसरण किया गया. धर्मात्मा राम ने शृङ्गवेरपुर में निषादों के राजा तथा अत्यन्त प्रिय गुह को पाकर समीपस्थ गङ्गातट पर सूत को छोड़ दिया..28-29..
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मूलश्लोकः-30-32
गुहेन सहितो रामो लक्ष्मणेन च सीतया . ते वनेन वनं गत्वा नदीस्तीर्त्वा बहूदकाः.. 30..
चित्रकूटमनुप्राप्य भरद्वाजस्य शासनात् . रम्यमावसथं कृत्वा रममाणा वने त्रयः.. 31..
देवगन्धर्वसङ्काशास्तत्र ते न्यवसन् सुखम् ..32..

श्लोकान्वयः -
गुहेन लक्ष्मणेन सीतया च सहितः रामः वनेन वनं गत्वा बहूदकाः नदीः तीर्त्वा भरद्वाजस्य शासनात् चित्रकूटमनुप्राप्य वने रम्यम् आवसथं कृत्वा देवगन्धर्वसङ्काशाः ते त्रयः रममाणाः सुखं न्यवसन्।.30-32..

हिन्दी - अनुवाद -
गुह नामक निषादराज, अनुज लक्ष्मण एवं पत्नी जानकी के साथ राम एक जंगल से दूसरे जंगल जाते हुए गहरी नदियों को पार कर भरद्वाज जी की आज्ञा से चित्रकूट गए. वहाँ उन्होंने एक सुन्दर आवास बनाकर देव एवं गन्धर्वों की भाँति सुख पूर्वक निवास किया..30-32..
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